ध्यान मान का, अपमानों का छोड़ दिया जब पी हाला,
बैर बढ़ाते मस्जिद मन्दिर मेल कराती मधुशाला!।५०।
कोमल कूर-करों में अपने छलकाती निशिदिन चलतीं,
और जलूं उस ठौर जहां पर कभी रही हो मधुशाला।।८३।
यदि इन खाली हाथों का जी पल भर बहलाता प्याला,
मिले न मंदिर, मिले न मस्जिद, मिल जाती है मधुशाला।।४७।
जिनमें वह छलकाती लाई अधर-सुधा-रस की हाला,
एक, मगर, उनका मदिरालय, एक, मगर, उनकी हाला,
हाथों में आने से पहले नाज़ Hindi poetry दिखाएगा प्याला,
सोम सुरा पुरखे पीते थे, हम कहते उसको हाला,
स्वर्ग लोक से सीधी उतरी वसुधा पर, दुख क्या जाने,
मिलने का आनंद न देती मिलकर के भी मधुशाला।।६७।
घन श्यामल अंगूर लता से खिंच खिंच यह आती हाला,
आज मिला अवसर, तब फिर क्यों मैं न छकूँ जी-भर हाला